Monday, August 27, 2007

दहके क्षण

आओ समय की राख कुरेदें
कुछ दहके से क्षण मिल जायें

जिस क्षण को बेकार समझकर
फेंक दिया जीवन से बाहर
वो ही सबसे सुन्दर क्षण था
वापिस उसको कैसे लायें

आओ समय की राख कुरेदें
कुछ दहके से क्षण मिल जायें

क्षणिक खेल था प्रेम हमारा
पर उसका पागलपन गहरा
अब प्रेमहीन निष्प्राण पलों में
वो उन्माद कहाँ से आये

आओ समय की राख कुरेदें
कुछ दहके से क्षण मिल जाएँ

काल की मृगतृष्णा से क्षण
पीछे भागे प्यासा मन
जो जीवन तृष्णा शाँत करे
पीयूष-स्रोत वो कहाँ से पायें

आओ समय की राख कुरेदें
कुछ दहके से क्षण मिल जायें

पहर भर का राग हो जैसे
जीवन अपना बीता ऐसे
कालजयी हो गूँजे हर क्षण
वो शाश्वत गीत हम गायें

आओ समय की राख कुरेदें
कुछ दहके से क्षण मिल जायें

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