Monday, April 28, 2008
मैं अब भी दूर नही...
मन ही मन बस गा पाया
खामोशी के बोल लिए
बेबाक सुरों ने जो गाया
वो गीत अगर तुम सुन पाये
या बाँध के गर तुम रख पाये
इस मन के पिंजड़े मे ही कहीं
तब यही समझना दोस्त मेरे
मैं अब भी तुमसे दूर नही
गाते गाते जो एक हुआ
हम दोनों के प्राणों से
अंतर्मन में उतर गया
डूबा था जो इन भावों में
उसकी बिखरी कलियों में गुम
महका करते अब तक तुम
जैसे निशिगंधा खिले कहीं
तब यही समझना दोस्त मेरे
मैं अब भी तुमसे दूर नही
गुलमोहर से लेकर अग्नि
फागुन का रँग लगाया था
बेलाग गीत के रँगों से
एक बीता पन्ना सजाया था
याद आती है वो छुपी किताब
और उसमे सहेजा एक गुलाब
जो दिया था मैंने तुमको कभी
तब यही समझना दोस्त मेरे
मैं अब भी तुमसे दूर नही
ये अपनी ही एक पुरानी बांगला कविता का अनुवाद किया है। इस अनुवाद में हमारे मित्र श्री पीयूष नें बहुत मदद की है, जिसके लिए उनका बहुत बहुत धन्यवाद ।
Saturday, April 5, 2008
दरिया को पार किया जाये
आओ के इस दरिया को फिर पार किया जाए
मौजों के रहम पे खुदी को रख दिया जाये
सपनों से बाँध ले अब gharonde को apne
रेत जो behtii है तो bahne दिया जाये
ख्वाहिशें हसीन हैं पर रुख को ज़रा मोड़
हकीकतों के आँधी से अब लड़ लिया जाये
साहिलों के छूटने का शिकवा न हो कहीं
कश्तियों के दिल को सख्त कर लिया जाये
Tuesday, April 1, 2008
कुछ नया सा...
नया सा कुछ लिखूँ ये चाह लिए
मैं भटकता रहा यादों के चिराग लिए
किसी मोड़ पे मिले कोई नई छाँव
कोई मील का पत्थर रोक ले मेरे पाँव
मुझको कोई शाम नया रँग दिखलाये
मेरी कलम मे रोशनाई नई भर जाए
लफ्जों के अम्बार मैंने टटोले हैं
बंद किवाड़ भी चुपके से कई खोले हैं
किसी पुराने लिफाफे में लिपटा हुआ
अनजान किसी खुशबू मे सिमटा हुआ
कोई नई बात ये लफ्ज़ मुझे कह जाए
मेरी कलम मे रोशनाई नई भर जाए
कोई साहिल मिले जो मौज से टूटा हो
कोई लम्हा जो कहीं वक्त से छूटा हो
किसी बिखरे से पल मे हो संजोया सा
दिखता हो हमेशा पर रहे खोया सा
ऐसे ख्याल से कोई मुझको मिल्वाये
मेरी कलम मे रोशनाई नई भर जाए