आज फिर लिखने की कोशिश की है। पूरी कविता तो नहीं है पर कुछ क्षण छोटे छोटे बंधों में सामने रख रहा हूँ।
१। सूखे सपने .......
उतर आए हैं कुछ सपने आँखों में फिरसे
मांगते हैं छाँव थोड़ी सी
के भीग ना जाएँ बारिशों में
सूखे रहने की आदत हो चुकी है
जानते हो, उन्ही को पनाह देने के लिए
आज मेरी पलकें झुकी हैं
२ उमस
उमस भरी एक दोपहरी
करवटें बदलते हुए
सिलवटों सी टूटी आह भरती है
पर्दों से आती रौशनी से परेशान
शाम के अँधेरे का इंतज़ार करती है
३
नन्हा सा पल
किलकारियां भरता हुआ
पाँव हवा में मारता हुआ
किसी दिन की गोद में चढ़ना चाहता है
उस दिन के कंधो पर बैठकर
अपनी धुंधली आँखों से
अपने बड़े होने का किस्सा पढना चाहता है
Monday, August 15, 2011
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