Monday, March 17, 2008

कहानी ऐसी होंगी

किताब यों ही अधखुली तो नही

कुछ तो मौजू में तकलीफ होगी

जो हाशिये से झाँक रहे मायने

उनमें भी कहानी एक रहती होगी

जो इस पार के सफों से शुरू होकर

उस पार के किसी पन्ने मी गुम हुयी

किसी स्याही के पिघले आँसू को थाम

कहानी किसी मुकाम पे ठहरती होगी

किताब के पहले पन्ने सी सफ़ेद

जहाँ कोई इबारत नही करती सवाल

उस कोरेपन के दिल में छुपते हुए

कहानी इन लफ्जों को सहती होंगी

कोई मरकज़ कोई साहिल ये किताब मेरी

इसकी आगोश में कई लम्हे जवान

इन्ही लम्हों की रवानी ओढे

कहानी भी नयी सी रहती होंगी

"ये कविता हमारे मित्र कुनाल जी से प्रेरित और उन्ही को समर्पित है."

Tuesday, March 4, 2008

कुछ कह जाए मुझे.......

हर उठती लहर नया मंज़र दिखलाये मुझे

बिखरने का नया अंदाज़ ये सिखलाये मुझे

मैंने देखा है इस दर्द को कई बार रोते हुए

कोई इस दर्द के छुपे दर्द से मिलवाये मुझे

तमन्नाओं का चाँद रात से जब डरता हो

रोशनी के मायने तब कोई समझाए मुझे

माजी को बिसारा 'अभी' किसी लोरी की तरह

उस लोरी के आँचल में कोई छुपा जाए मुझे