मेरे आँगन के नीम को शिकायत है मुझसे
उसकी उम्र से बोझिल बाहों का जो सहारा था
जिसे उसने अपनी छाँव में संवारा था
वो झूला आज उससे छूट गया
मेरी बिटिया की डोली है आँगन में
और मेरे आँगन के नीम का दिल टूट गया
जब बिटिया छोटी थी
धूप करती थी कोशिश की उसे छू सके
लाख जतन करती थी की उसे सहलाने को
पर अपनी पत्तियों को हिला हिला कर
लड़ा था यही नीम उसे बचाने को
आज धूप खिल-खिला रही है
सूरज बिट्टू के माथे पर सज कर बैठा है
नीम अपनी हार का दुःख लिए
मुझसे, मेरे आँगन से ऐंठा है
जब बिटिया ने कहना सीखा था
कितनी बातें होती थी नीम से गुप-चुप
अपनी शिकायत, डर और खुशी के किस्से
और सबसे छिपे हुए अपनी ज़िंदगी के हिस्से
आज वो सब हिस्से कोई और लिए चलता है
इस नए राज़दार से मन ही मन
मेरे आँगन का नीम आज जलता है
पर ये पीड़ा, ये दर्द , ये चुभन
ये छूट जाने के आंसू
ये पराया होने की जलन
कहारों की पाँव की धूल में उड़ जाते हैं
मैं और मेरे आँगन का नीम
बस अपने खालीपन से जुड़ जाते हैं