आज बहुत दिनों के बाद कुछ लिखने की कोशिश कर रहा हूँ। पिछले कई महीनो से शहर , देश , नौकरी सब कुछ बदल गए। उसी बदलाव को संभालते हुए इतने दिन बीत गए। आज कुछ नया लिख रहा हूँ....देखिएगा....
उचकते हुए कुछ सपनो ने
कोशिश की है देखने की
नींद की दीवार के उस पार
उन्होंने उस पार के बहुत किस्से सुने हैं
और उन किस्सों के ताने-बाने से
अपने लिए कई सपने बुने हैं
नींद के उस पार जो जादू भरा देश है
जिसमे अंधेरों के उजाले हैं
उस अँधेरे-उजाले के रंगीन जादू को
करना चाहता है अपना
उचकता हुआ हर नया सपना
ताकि वो भी किसी आंख में रम जाएँ
सपने भर के लिए ही सही
समय इस माया में थम जाए
पल भर के लिए वो सपना सब कुछ बन जाए
और पल टूटते ही
किसी कठोर सच की बलिवेदी पर चढ़ जाए
Monday, February 1, 2010
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