Friday, September 21, 2007

अब क्या कहें

शेष भाग

आज की इस परिस्थिति का उत्तरदायी आज का समाज है। समाज शब्द से हमारी व्यक्तिगत ग्लानि को छुपाने की कोशिश सी लगती है, इसीलिये स्पष्ट कर दूँ कि समाज मतलब हम सब। दूसरो के दुःख को बाज़ारोपयोगी वस्तु बनाने का श्रेय न्यूज़ चैनल को नही, हमारा है। हम आतुर रहते हैं ऎसी खबरों के लिए क्योंकी परोक्ष रुप से ये खबरें सभयता के लिबास मे छुपी इंसानी विकृतियों को उसका भोजन देती हैं।

हम सबको अच्छा लगता है कि कोई भयानक सी, कुत्सित सी खबर आये, जिस देखकर, सुनकर हमें मज़ा मिले और साथ ही हम दूर से उनपर दया भाव दिखाकर आत्म-गौरव महसूस कर सकें। हमारी इसी सामूहिक विकृत मानसिकता को भुनाते हुये ये न्यूज़ चैनल झूठी-सच्ची खबरों के साथ हमारे सामने आते हैं और हम इसको अपने सामान्य ज्ञान मे वृद्धि जानकार निगल जाते हैं.

1 comment:

डॉ .अनुराग said...

bilkul sahi bat kahi aapne....kahi kisi lakhmanrekha ki jarurat hai.