Tuesday, May 6, 2008

रोटी और Darwin

डार्विन का कथन है survival of fittest

इसका मतलब किसी प्रजाति में हमेशा एक संघर्ष, एक अंतर्द्वंद रहेगा की सिर्फ़ जीवित रहने के लिए, जिंदा रहने की होड़ , इसीपर लिखी गयी है ये कविता.....

शहर का धूमिल चाँद

बिजली के तारों में अटका

एक रोटी जैसा दिखता है

भूख फुटपाथ पे लेटी

पुराने अखबार में लिपटी

बुझी आँखों को उठाती है


कोशिश है रोटी लेने की

मगर उसमे भी मजबूरी है

दूसरों की भूख से लड़ना है


लड़ाई अमीर गरीब की नही

लड़ाई दो गरीबों की है

एक खायेगा

एक को मरना है


यह किस्सा ऐसे चलेगा

एक जीवन का मोल दूसरा जीवन

'Darwin' आज मुस्कुरा रहा है

4 comments:

Piyush k Mishra said...

लड़ाई अमीर गरीब की नही
लड़ाई दो गरीबों की है
एक खायेगा एक को मरना है

darwin ka sidhhant ko aaj kepariprekshya mein bahut hi sateek tareeke se likha hai dada.
mujhe aapki likhi kavitaaon mein yeh sabse zyada pasand hai.

कुश said...

bahut gahri baat kahi hai aapne.. bhaiya.. in panktiyo mein..

vartman yug ki shayad yahi trasadi hai ki darwin ka sidhhant kuch is tarah pratipadit hota hai..

bejod soch ka namuna.. badhai.

डॉ .अनुराग said...

आपकी कल्पना को प्रणाम सर जी......कुछ पंक्तिया ....बेमिसाल है.....लड़ाई दो गरीबो की है....सच ....

pallavi trivedi said...

शहर का धूमिल चाँद
बिजली के तारों में अटका
एक रोटी जैसा दिखता है
भूख फुटपाथ पे लेटी
पुराने अखबार में लिपटी
बुझी आँखों को उठाती है

bahut hi umda hai...ek yathaarthvadi kavita,