Saturday, September 6, 2008

अपनों सी धरती...

कई बार मन ये भी करता है

के चलते रहे

बिना रुके, बिना मुडे

और पहुँच जाएँ वहाँ

जहाँ ये धरती चुपके से सूरज को निगल जाती है

पर वो जगह बस नज़र आती है

हर बार पास आने पर

जाने क्यों क़दमों की गिरफ्त से फिसल जाती है

मैं हैरान होता हूँ

ये मानों किसी मनचले सपने सी हो गयी

पास, दूर और फिर पास लगना

मिलके हँसना

हँसकर बिछडना

धरती भी मेरे अपनों सी हो गयी

11 comments:

ताऊ रामपुरिया said...

पास, दूर और फिर पास लगना
मिलके हँसना
हँसकर बिछडना
धरती भी मेरे अपनों सी हो गयी

अभीजित जी बहुत भाव पूर्ण रचना !
बधाई !

संगीता पुरी said...

बहुत ही अच्छी रचना।

संगीता पुरी said...

पांच लाइनों में सबकुछ कह दिया ! अरे वाह !

डॉ .अनुराग said...

पास, दूर और फिर पास लगना

मिलके हँसना

हँसकर बिछडना

धरती भी मेरे अपनों सी हो गयी


बहुत खूब ....बड़े दिनों बाद आप नजर आये .....आपको मिस किया बहुत.......

Udan Tashtari said...

बहुत बेहतरीन रचना, वाह!!


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-समीर लाल
-उड़न तश्तरी

वीनस केसरी said...

अच्छी कविता
धरती भी मेरे अपनों सी हो गयी

आखिरी लाइन में वाह वाह हो गई

-- आपका वीनस केसरी

pallavi trivedi said...

khoobsurat nazm hai....achchi lagi.

कुणाल किशोर (Kunal Kishore) said...


....धरती भी मेरे अपनों सी हो गयी


बहुत कुछ कह गये आप इन कब शब्दो मे... क्या कहु आगे और|
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दादा, आज सपर कर दोस्तो के ब्लोग पढने की ठानी थी क्योकि काम की व्यसतता के कारण बिल्कुल अलग थलग पडा हुआ था| यहाँ आकर लगता है कि मैने कुछ उम्दा post को गर्मागरम पढने के सुख से खुद को वंचित किया है... आप के लिखा का मै तो यु ही पुराना fan हुँ पर युँ ब्लोग मे सार्वजनिक रुप से पढना अलग अनुभव रहा... उम्मीद है आप यु ही लिखते रहेंगे और हम भी भरसक प्रयास करेंगे की जब भी जैसे भी हो, हम आपकी रचनावो से जुडे रहेंगे|
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شہروز said...

kavita निश्चित ही सराहनीय है.
कभी समय मिले तो हमारे भी दिन-रात आकर देख लें:

http://shahroz-ka-rachna-sansaar.blogspot.com/
http://hamzabaan.blogspot.com/
http://saajha-sarokaar.blogspot.com/

Piyush k Mishra said...

Namaskaar dada

aaj bahut dinon baad aapke blog par aaya.maafi chahunga balki yun kahein meri hi buri kismat ki itne dinon tak nahin padha maine.

ek baat jo bahut hi katu ho sakti thi use itne maasoom tareeke se kahna saraahneeya hai.padhte padhte laga nahin tha anth aisa hoga.
bahut hi achhi rachna

shelley said...

bahut khub. sach maan ka ghoda aisi chhalang lagata hai kavi- kavi.