Thursday, August 7, 2008

मौत...एक लम्हे का बदलाव

दिन बीता, रात गयी, फिर नया दिन
कई दिनों से नीँद के इँतज़ार मे बैठी आँखें
आख़िर आज थककर सो गयीं
ख़्वाबों की टिमटिमाती दुनिया में
ये धधकती धडकती दुनिया खो गयी....

इस मखमली अँधेरे लम्हे से पहले
आखिरी बारकुछ साये से आये थे नज़र
जैसे कुछ बीते मौसम, कुछ साल, कुछ महीने
कुछ कहना भूल गये थे ताबा
लौटकर वही बताने आये थे

ठिठके, मुडे, रूके

सोचा, मुडे, चले
जो कहा नही तब भी

बताया नही अब भी

मगर उनके इसी ठिठकने मे पता चला

इन आँखों को
अब उनको भी खोने का सफर करना है

इन बीते वक़्त के टुकडो को लेकर साथ

किसी खाली ख्वाब को भरना है
बस फर्क सिर्फ इतना होगा
खाली से ख्वाब हक़ीक़त होंगे
भरी सी हक़ीक़त सपना होगा

7 comments:

Udan Tashtari said...

बहुत बढ़िया.

seema gupta said...

किसी खाली ख्वाब को भरना है
बस फर्क सिर्फ इतना होगा
खाली से ख्वाब हक़ीक़त होंगे
भरी सी हक़ीक़त सपना होगा
"good to read, full of emotion and thoughts"
Regards

ताऊ रामपुरिया said...

खाली से ख्वाब हक़ीक़त होंगे
भरी सी हक़ीक़त सपना होगा

बहुत सुंदर !

डॉ .अनुराग said...

बस फर्क सिर्फ इतना होगा
खाली से ख्वाब हक़ीक़त होंगे
भरी सी हक़ीक़त सपना होगा

ये शब्द अपने आप में सब कुछ कह जाते है......सब कुछ

कुश said...

aha!! kitni gahri baat.. main kya comment karu is par..
main kya comment kar sakta hu..

ताऊ रामपुरिया said...

परिवार एवं इष्ट मित्रों सहित आपको जन्माष्टमी पर्व की
हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं ! कन्हैया इस साल में आपकी
समस्त मनोकामनाएं पूर्ण करे ! आज की यही प्रार्थना
कृष्ण-कन्हैया से है !

art said...

बहुत सुंदर