Friday, December 26, 2008

पिंजरों का दर्द

पिंजरों के भी जज़्बात होते हैं

वो भी परिंदों के लिए रोते हैं

बस परिंदों के शोर में कहीं

अपनी दबी आवाज़ खो देते हैं

किसी का आशियाँ कहला सकें

इसलिए कितना जतन करते हैं

पर परिंदे हैं कि हर वक़्त उसे

अपना कहने से मुकरते हैं

कभी कभी हताश गुस्से में

शिकायत भी करते होंगे

फिर अपनी शिकायतों का क़र्ज़

अपने ही दर्द से भरते होंगे

हर जतन करते हैं ये

कभी हँसते, कभी रोते, कभी जिंदगी के गीत गाते हैं

अब कैसे समझाऊँ मैं इनको

ये क्यों कभी आसमान नही बन पाते हैं

9 comments:

ताऊ रामपुरिया said...

अब कैसे समझाऊँ मैं इनको

ये क्यों कभी आसमान नही बन पाते हैं

लाजवाब रचना भाई अभिजित जी !

रामराम !

महेंद्र मिश्र.... said...

पिंजरों के भी जज़्बात होते हैं
वो भी परिंदों के लिए रोते हैं
बस परिंदों के शोर में कहीं
अपनी दबी आवाज़ खो देते हैं.

बढ़िया रचना . लिखते रहिये. धन्यवाद.

Vinay said...

बहुत ख़ूब

....
तखलीक़-ए-नज़र
http://vinayprajapati.wordpress.com/

vipinkizindagi said...

achcha shabd sanyojan
achchi rachna

संगीता पुरी said...

बहुत सुंदर रचना है...बधाई।

mehek said...

bahut khub

श्रद्धा जैन said...

aaj tak parindon ka dard suna pada tha
lekin pinjare bhi tadapte hain ye bahut alag si soch lagi
jaise ek khali makaan kisi hansi ke liye tarse
zamana hua aapko pade ab padna hota rahega

कुश said...

अंतिम पंक्ति गहरे तक उतार गयी मान में.. यही आपकी ख़ासियत है

ताऊ रामपुरिया said...

आपको होली की घणी रामराम.