Sunday, June 8, 2008

पराये शहर की बारिश...

आज बारिश हो रही है


पानी का रँग वही


आवाज़ भी


पर वैसा गीलापन नही


जो घर पर होता था


जो गिरता था थके तन पर


और मन को भिगोता था


नही......ये वो बरसात तो नही


जो मेरे शहर में आती थी


पराये शहर की बारिश


कुछ खारी होती है शायद.......



5 comments:

महेन said...

अच्छी चलती है अभिजीत की लेखनी। सहमत हूँ बँधु पराये शहर की बारिश खारी होती है। वो मन को नहीं भिगो पाती।

कुश said...

कुछ सुखापन बारिशे भी नही गीला कर पाती .. एक और सुंदर अभिव्यक्ति.. आपकी लेखनी से

डॉ .अनुराग said...

जो मेरे शहर में आती थी

पराये शहर की बारिश

कुछ खारी होती है शायद.......


बहुत सुंदर .....ये पंक्तिया अब तक मेरे दिल मे अटकी है......

Saee_K said...

पराये शहर की बारिश

कुछ खारी होती है शायद.......

jo bhi apni maati se alag hua hai..jaanta hai..wo sheher badalna ho ya des badalna..

bahut khoobsoorat bhaav...hamne bhi mehsoos kiya jise..

:)

pallavi trivedi said...

kya baat hai...sundar nazm..dil chhoo gayi.