Tuesday, March 4, 2008

कुछ कह जाए मुझे.......

हर उठती लहर नया मंज़र दिखलाये मुझे

बिखरने का नया अंदाज़ ये सिखलाये मुझे

मैंने देखा है इस दर्द को कई बार रोते हुए

कोई इस दर्द के छुपे दर्द से मिलवाये मुझे

तमन्नाओं का चाँद रात से जब डरता हो

रोशनी के मायने तब कोई समझाए मुझे

माजी को बिसारा 'अभी' किसी लोरी की तरह

उस लोरी के आँचल में कोई छुपा जाए मुझे

4 comments:

Poonam Agrawal said...

Aapkee lekhni se nikle ye bhaav nishchay he sarahniya hain...
Likhte rahiye..
All the best...

vikasgoyal said...

Sundar... Dard ka dard- kya thought hai...

डॉ .अनुराग said...

तमन्नाओं का चाँद रात से जब डरता हो

रोशनी के मायने तब कोई समझाए मुझे

bahut badhiya,bangaali babu.

Piyush k Mishra said...

मैंने देखा है इस दर्द को कई बार रोते हुए
कोई इस दर्द के छुपे दर्द से मिलवाये मुझे

kitna sahi expression hai.

तमन्नाओं का चाँद रात से जब डरता हो

रोशनी के मायने तब कोई समझाए मुझे

khoobsoorat ke alawa kuchh bhi nahin..baht dard hai is kavita mein...