Wednesday, February 6, 2008

मध्य वर्ग के प्राणी

मध्य वर्ग में विचरते लोग
किसी अमीर गाडी के शीशे में खुद को निहार
अपनी जनपथ वाली ब्रांडेड कमीज़ को संवार
किसी उपरी पायदान में चढ़ने के सपने लिए
नीचे के पायदान को भी खोते हैं
अधर में लटके किसी त्रिशंकु की तरह
एक किफायती स्वर्ग के सपने संजोते हैं

थान भर रीति-रिवाज़ से ढांपकर खुदको
बनते हैं किसी रूढी के पहरेदार
किसी अनसुनी परंपरा के सिपहसालार
अपने इतिहास को किसी नाम से जोड़ने के लिए
तिल-तिल अपनी पहचान भी खोते हैं
अधर में लटके किसी त्रिशंकु की तरह
एक किफायती स्वर्ग के सपने संजोते हैं

किश्तों में मिलती खुशियों से कभी कभी
लेते हैं जीवन के दो पल उधार
अपनी मृत आशाओं को जबरन बिसार
रंगीन रोशनी की चमक में चुन्धियाने के लिए
अपने अँधेरे का भरोसा भी खोते हैं
अधर में लटके किसी त्रिशंकु की तरह
एक किफायती स्वर्ग के सपने संजोते हैं

6 comments:

प्रशांत तिवारी said...

बडे भाई नमस्कार .आपने बडे ही अछे शब्दों मे मध्यम वर्गीयों की परिस्थिति का लेखा बयां किया है

Abhijit said...

Dhanyawaad Tiwari ji....himmat badhane ke liye.

Joy said...

wah wah

..मस्तो... said...

Daadaa ..
baat achhi hai....!![:)][:)]
baat sachhi hai...


Love..Masto...

vikasgoyal said...

अधर में लटके किसी त्रिशंकु की तरह
एक किफायती स्वर्ग के सपने संजोते हैं

vikasgoyal said...

अधर में लटके किसी त्रिशंकु की तरह
एक किफायती स्वर्ग के सपने संजोते हैं
Bahut sundar...