Monday, April 28, 2008

मैं अब भी दूर नही...

जो गीत कहा था गाने को
मन ही मन बस गा पाया
खामोशी के बोल लिए
बेबाक सुरों ने जो गाया
वो गीत अगर तुम सुन पाये
या बाँध के गर तुम रख पाये
इस मन के पिंजड़े मे ही कहीं
तब यही समझना दोस्त मेरे
मैं अब भी तुमसे दूर नही

गाते गाते जो एक हुआ
हम दोनों के प्राणों से
अंतर्मन में उतर गया
डूबा था जो इन भावों में
उसकी बिखरी कलियों में गुम
महका करते अब तक तुम
जैसे निशिगंधा खिले कहीं
तब यही समझना दोस्त मेरे
मैं अब भी तुमसे दूर नही


गुलमोहर से लेकर अग्नि
फागुन का रँग लगाया था
बेलाग गीत के रँगों से
एक बीता पन्ना सजाया था
याद आती है वो छुपी किताब
और उसमे सहेजा एक गुलाब
जो दिया था मैंने तुमको कभी
तब यही समझना दोस्त मेरे
मैं अब भी तुमसे दूर नही


ये अपनी ही एक पुरानी बांगला कविता का अनुवाद किया है। इस अनुवाद में हमारे मित्र श्री पीयूष नें बहुत मदद की है, जिसके लिए उनका बहुत बहुत धन्यवाद ।











7 comments:

कुश said...

याद आती है वो छुपी किताब
और उसमे सहेजा एक गुलाब

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति भइया!
आपको बहुत दिनो से याद कर रहा था.. चलो आज आपके ब्लॉग पर कुछ मिला..

अमिताभ मीत said...

बहुत बढ़िया है भाई. बधाई.

डॉ .अनुराग said...

याद आती है वो छुपी किताब
और उसमे सहेजा एक गुलाब
जो दिया था मैंने तुमको कभी
तब यही समझना दोस्त मेरे
मैं अब भी तुमसे दूर नही
vah......
निसंदेह एक अच्छी कविता...ये पंक्तिया बेहद पसंद आई.....आप शायद मसरूफ थे पिछले दिनों.....

Poonam Agrawal said...

sunder abhivyaktee ...

pallavi trivedi said...

याद आती है वो छुपी किताब
और उसमे सहेजा एक गुलाब
जो दिया था मैंने तुमको कभी
तब यही समझना दोस्त मेरे
मैं अब भी तुमसे दूर नही

waah...bahut achcha likha...khoobsurat bhaav.

Piyush k Mishra said...

मैं अब भी तुमसे दूर नहीं....ये पंक्ति कमाल की है!!
यादों की दराज खोलती सी...मद्धम मद्धम सी आगे बढ़ती हुई...
बहुत प्यारी रचना है.

Saee_K said...

मैं अब भी तुमसे दूर नहीं..

yeh poem test bhi leti hai..aur vishwaas bhi deti hai...apni dosti barkarar hai...

aapko ek khoobsoorat kavita aur uske khoobsoorat anuvaad ke liye badhai..

likhte rahe...