Tuesday, November 27, 2007

द्वंद्व समास

एक होने का स्वप्न लिए
हमने समय से संधि की थी
पर न समय बदला
ना हम
ना तुम
एक स्वर ना हो पाए कभी
आज भी केवल जुडे हुए से
द्वंद्व के भीतर खडे हुए से
एक शब्द नही
बस समूह भर बन कर रहते हैं
शायद हमारे रिश्ते को
द्वंद्व समास कहते हैं





3 comments:

डॉ .अनुराग said...

hum bahut dino bad padha tumhe,kuch ahsas udas maloom hote hai.

पारुल "पुखराज" said...

वाह क्या बात है…।बहुत दिनो बाद पढ़ा है आप्को…॥
हमेशा ही अच्छा लगता है

Shilpa Bhardwaj said...

kya baat hai... dwandwa samaas ka itna accha udaharan to vyakaran ki kitab mein bhi nahi milega...