हर शख्स सोचता है दौड़ के पकड़ लेगा
वक़्त की डोर का सिरा,
मगर मिलता नही
क्योंकि हर पल वो सिरा
थोड़ा और आगे बढ जाता है
आदमी भागता रहता है
पर बस एक लम्हे को पकड पाता है
बीते छोर से
कल की ओर तक
जो सफर है कुछ मापी हुई दूरी का
वो बेशुमार पलों का रास्ता
कैसे बन जाता है
आदमी भागता रहता है
पर बस एक लम्हे को पकड पाता है
रस्ते के थके से साये
कुछ झुके से मील के पत्थर
गवाही देते हैं
पलों के गुज़रने की
पर हर बार जाने कैसे
वक़्त एक रात आगे चला जाता है
आदमी भागता रहता है
पर बस एक लम्हे को पकड पाता है
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment