मेरे शहरी जीवन को पहली ठेस तब लगी जब मैंने शक्तिनगर स्टेशन देखा। दिल्ली महानगर में पैदा हुआ और पला बढ़ा। २ साल पांडिचेरी में बिठाये पर वो भी रुरल एरिया नही था। फिर भारत के सबसे बड़े ताप बिजली निर्माण कंपनी में नौकरी मिली तो प्रशिक्षण काल दिल्ली के पास नॉएडा में बिताया। प्रशिक्षण के दौरान आदेश मिला की ६ माह का अगला प्रशिक्षण शक्तिनगर में होगा। मेरे शहरी दिमाग में ऐसा कोई नक्शा नही था जहाँ इस नाम की कोई जगह दिखती हो। पूछने पर पता चला की बनारस के २५० की.मी.दक्षिण पूर्व में उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सीमा पर रिहंद बाँध के पास ये ताप बिजली घर है। ये भी पता चला की यहाँ जाने के लिए लखनऊ से ट्रेन पकड़नी होगी। खैर, टिकेट कटवाया गया और हम अपने एक साथी प्रशिक्षु के साथ लखनऊ रवाना हुए और लखनऊ से त्रिवेणी एक्सप्रेस से यात्रा आरम्भ की। एक के बाद एक स्टेशन, फिर अलाहाबाद और उसके बाद के स्टेशन के नाम भी नही सुने थे। कुछ ऐसे स्टेशन दिखे जहाँ तब भी एक ढिबरी के प्रकाश में स्टेशन मास्टर सिग्नल दिखा रहे थे। ऎसी चीज़ें तब तक मैंने केवल फ़िल्म में देखी थी.....सब कुछ थोडा अजीब सा लग रहा था।
खाना खाया, सोये और फिर जगे तो लोगो से सुना शक्तिनगर आने वाला है.....आलसी मन बोला की थोड़ी देर चादर तान कर और सो लें। अबकी बार नींद खुली तो शक्तिनगर आ चुका था। समान समेटा और हमारा साथी ट्रेन के दरवाज़े तक गया और ज़ोर से बोला....अरे दादा, हम ग़लत जगह आ गए...ट्रेन तो यार्ड में आ गई है। हडबडा के गए....देखा तो प्लेटफोर्म नदारद था। एक गुज़रते हुए आदमी से पूछा तो पता चला की यही स्टेशन है और यहाँ कोई प्लेटफोर्म नही है....सामान लेकर नीचे कूदना ही एकमात्र उपाय है। मन ही मन खूब कोसा कंपनी को...और कोई जगह नही मिली थी...अरे कम से कम लखनऊ में ही बनवा देते। पर अब क्या करते...समान सँभालते हुए एक टूटे से रिक्शे में बैठ ट्रेनिंग सेंटर पहुंचे और हमें हॉस्टल में जगह दी गयी। हॉस्टल के चौकीदार ने चाबी देते हुए बड़े इत्मीनान से कहा..."रात को निकलना नही...इहाँ बहुत सौंप बा...और बालकोनी माँ कपडा ध्यान से सुखाई...नही तो ई लंगूर कपडा लत्ता उठा के ले जाब "। उसके कहने के ढंग से लग रहा था जैसे ये कितनी नोर्मल बात है...और हमारी शहरी जान सूख कर काँटा हो रही थी। सच कहूं...अपने ऊपर बहुत तरस आ रहा था। हॉस्टल में अपने बाकी साथियों से मिले....बहुत अनमने भाव से खाना खाया और किस्मत को कोसते हुए सो गए।
हमें सुबह जल्दी जागने की बुरी आदत है, सो जाग गए। बालकनी में गए.....और पहली बार ख़ुद को इतना चुप-चाप महसूस किया। सुबह की पावन निस्तब्धता, सद्यस्नाता किसी पुजारिन सी, ओस में नहायी हुयी सुबह। पक्षियों का कूजन भी मानो उस शान्ति को बढ़ा रहा था। चारो तरफ़ हरियाली, एक छोटी सी हरी भरी पहाडी और एक निर्जन सी रेल लाइन....ये कैसी जगह थी? ऐसी सुबह में मन करता है की खूब साँस लूँ...और इस सुबह की महक को पोर पोर में क़ैद कर लूँ। अब तक जो संगीत सीखा था वो याद आ रहा था। शायद पहली बार मुझे समझ आया की प्रातः काल में भैरव राग के शुद्ध स्वर क्या जादू जागते होंगे। मेरा शहरी मन ओस में धुल चुका था और शक्तिनगर मेरी यादों में बसने के लिए तैयार था.......
.......क्रमशः
5 comments:
जारी रहिये..सही प्रवाह कल रहा है...
वाह ये हुई ना बात..
वैसे इस तरह के कई स्टेशन राजस्थान के गावों में मिल जाएँगे आपको..
अगली कड़ी का इंतेज़ार है
हमें सुबह जल्दी जागने की बुरी आदत है, सो जाग गए। बालकनी में गए.....और पहली बार ख़ुद को इतना चुप-चाप महसूस किया। सुबह की पावन निस्तब्धता, सद्यस्नाता किसी पुजारिन सी, ओस में नहायी हुयी सुबह। पक्षियों का कूजन भी मानो उस शान्ति को बढ़ा रहा था। चारो तरफ़ हरियाली, एक छोटी सी हरी भरी पहाडी और एक निर्जन सी रेल लाइन....ये कैसी जगह थी? ऐसी सुबह में मन करता है की खूब साँस लूँ...और इस सुबह की महक को पोर पोर में क़ैद कर लूँ। अब तक जो संगीत सीखा था वो याद आ रहा था। शायद पहली बार मुझे समझ आया की प्रातः काल में भैरव राग के शुद्ध स्वर क्या जादू जागते होंगे। मेरा शहरी मन ओस में धुल चुका था और शक्तिनगर मेरी यादों में बसने के लिए तैयार था.......
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क्या बात है.... आप कितने खुशनसीब है कि आपको ऐसी जगह पर भेजा गया ....मुझे ऐसी जगह जाने के लिए अपने पैसे खर्च करके ट्रेक करने पड़ते है.... आई होप इस जगह और यहाँ रहने के एक्सपीरियेन्स ने आपके जिंदगी के काफ़ी नज़रिए बदल दिए होंगे ....
आपका शक्ति नगर हमें भी खीच लेगा ऐसा लगता है सारी बातें सुनकर
शक्तिनगर मेरी यादों में बसने के लिए तैयार था.......
साहब जबरदस्त प्रवाह है... अब अगली कडी
पढ़ कर ही मालुम पडेगा शक्ति नगर का जादू !
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