मध्य वर्ग में विचरते लोग
किसी अमीर गाडी के शीशे में खुद को निहार
अपनी जनपथ वाली ब्रांडेड कमीज़ को संवार
किसी उपरी पायदान में चढ़ने के सपने लिए
नीचे के पायदान को भी खोते हैं
अधर में लटके किसी त्रिशंकु की तरह
एक किफायती स्वर्ग के सपने संजोते हैं
थान भर रीति-रिवाज़ से ढांपकर खुदको
बनते हैं किसी रूढी के पहरेदार
किसी अनसुनी परंपरा के सिपहसालार
अपने इतिहास को किसी नाम से जोड़ने के लिए
तिल-तिल अपनी पहचान भी खोते हैं
अधर में लटके किसी त्रिशंकु की तरह
एक किफायती स्वर्ग के सपने संजोते हैं
किश्तों में मिलती खुशियों से कभी कभी
लेते हैं जीवन के दो पल उधार
अपनी मृत आशाओं को जबरन बिसार
रंगीन रोशनी की चमक में चुन्धियाने के लिए
अपने अँधेरे का भरोसा भी खोते हैं
अधर में लटके किसी त्रिशंकु की तरह
एक किफायती स्वर्ग के सपने संजोते हैं
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6 comments:
बडे भाई नमस्कार .आपने बडे ही अछे शब्दों मे मध्यम वर्गीयों की परिस्थिति का लेखा बयां किया है
Dhanyawaad Tiwari ji....himmat badhane ke liye.
wah wah
Daadaa ..
baat achhi hai....!![:)][:)]
baat sachhi hai...
Love..Masto...
अधर में लटके किसी त्रिशंकु की तरह
एक किफायती स्वर्ग के सपने संजोते हैं
अधर में लटके किसी त्रिशंकु की तरह
एक किफायती स्वर्ग के सपने संजोते हैं
Bahut sundar...
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