कई बार मन ये भी करता है
के चलते रहे
बिना रुके, बिना मुडे
और पहुँच जाएँ वहाँ
जहाँ ये धरती चुपके से सूरज को निगल जाती है
पर वो जगह बस नज़र आती है
हर बार पास आने पर
जाने क्यों क़दमों की गिरफ्त से फिसल जाती है
मैं हैरान होता हूँ
ये मानों किसी मनचले सपने सी हो गयी
पास, दूर और फिर पास लगना
मिलके हँसना
हँसकर बिछडना
धरती भी मेरे अपनों सी हो गयी
11 comments:
पास, दूर और फिर पास लगना
मिलके हँसना
हँसकर बिछडना
धरती भी मेरे अपनों सी हो गयी
अभीजित जी बहुत भाव पूर्ण रचना !
बधाई !
बहुत ही अच्छी रचना।
पांच लाइनों में सबकुछ कह दिया ! अरे वाह !
पास, दूर और फिर पास लगना
मिलके हँसना
हँसकर बिछडना
धरती भी मेरे अपनों सी हो गयी
बहुत खूब ....बड़े दिनों बाद आप नजर आये .....आपको मिस किया बहुत.......
बहुत बेहतरीन रचना, वाह!!
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निवेदन
आप लिखते हैं, अपने ब्लॉग पर छापते हैं. आप चाहते हैं लोग आपको पढ़ें और आपको बतायें कि उनकी प्रतिक्रिया क्या है.
ऐसा ही सब चाहते हैं.
कृप्या दूसरों को पढ़ने और टिप्पणी कर अपनी प्रतिक्रिया देने में संकोच न करें.
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-समीर लाल
-उड़न तश्तरी
अच्छी कविता
धरती भी मेरे अपनों सी हो गयी
आखिरी लाइन में वाह वाह हो गई
-- आपका वीनस केसरी
khoobsurat nazm hai....achchi lagi.
....धरती भी मेरे अपनों सी हो गयी
बहुत कुछ कह गये आप इन कब शब्दो मे... क्या कहु आगे और|
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दादा, आज सपर कर दोस्तो के ब्लोग पढने की ठानी थी क्योकि काम की व्यसतता के कारण बिल्कुल अलग थलग पडा हुआ था| यहाँ आकर लगता है कि मैने कुछ उम्दा post को गर्मागरम पढने के सुख से खुद को वंचित किया है... आप के लिखा का मै तो यु ही पुराना fan हुँ पर युँ ब्लोग मे सार्वजनिक रुप से पढना अलग अनुभव रहा... उम्मीद है आप यु ही लिखते रहेंगे और हम भी भरसक प्रयास करेंगे की जब भी जैसे भी हो, हम आपकी रचनावो से जुडे रहेंगे|
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kavita निश्चित ही सराहनीय है.
कभी समय मिले तो हमारे भी दिन-रात आकर देख लें:
http://shahroz-ka-rachna-sansaar.blogspot.com/
http://hamzabaan.blogspot.com/
http://saajha-sarokaar.blogspot.com/
Namaskaar dada
aaj bahut dinon baad aapke blog par aaya.maafi chahunga balki yun kahein meri hi buri kismat ki itne dinon tak nahin padha maine.
ek baat jo bahut hi katu ho sakti thi use itne maasoom tareeke se kahna saraahneeya hai.padhte padhte laga nahin tha anth aisa hoga.
bahut hi achhi rachna
bahut khub. sach maan ka ghoda aisi chhalang lagata hai kavi- kavi.
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