ये सोचो...
पुरानी बातें यादों का तकाजा करें
बीते कोहरे गुम होने की इजाज़त चाहें
कोई ढलता लम्हा थाम ले हाथ
माँग ले तुमसे थोडा और साथ
तो क्या हाथ झटक आगे बढ़ पाओगे
या फिर बीती बातों को याद कर
फिर से चुप रह जाओगे
ये सोचो....
अगर कोई राह तुमसे छाँव माँग ले
या धूप माँगे सुकून की कीमत
कोई मील का पत्थर
कहे तुमसे ये बढ़कर
मुझे भी किसी मंजिल का पता देते जाओ
तो क्या ये सब तुम दे पाओगे
या किसी भूले हुए रास्ते सा
समय की धूल से ढक जाओगे
ये सोचो...
कोई नया तारा कहे गर तुमसे
मेरा नया चाँद बनो
नयी सी उजली धुली रात बनो
कोई नया किस्सा नयी बात बनो
क्या तुम कोई रोशनी दे पाओगे
या किसी पिघलते चाँद की तरह
किसी अमावस में सो जाओगे
4 comments:
या किसी पिघलते चाँद की तरह
किसी अमावस में सो जाओगे
वाह क्या बात कही है.. ये दो पंक्तिया मुझे बेहद पसंद आई.. वैसे तो पूरी रचना ही अनुपम है.. बधाई स्वीकार करे..
कोई ढलता लम्हा थाम ले हाथ
माँग ले तुमसे थोडा और साथ
तो क्या हाथ झटक आगे बढ़ पाओगे
क्या बात कही है.....ओर पूरी रचना का जो ख्याल है अंत तक बना हुआ है....बधाई.....
आपकी कविताओं में शब्दों का चमत्कार होता है हमेशा.भाव बहुत कुशलता से आ जाते हैं.
ये कविता शुरू से अंत तक बाँधे रखती है.एक अच्छी और सटीक कविता.
कोई ढलता लम्हा थाम ले हाथ
माँग ले तुमसे थोडा और साथ
तो क्या हाथ झटक आगे बढ़ पाओगे
या फिर बीती बातों को याद कर
फिर से चुप रह जाओगे
bahut kuch kehti hai yeh panktiya..
ham aksar wahi karte hai jo karna nahi chahiey tha..kyunki hamne socha nahi...
bahut hi khoobsoorat...
likhte rahe..
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