नया सा कुछ लिखूँ ये चाह लिए
मैं भटकता रहा यादों के चिराग लिए
किसी मोड़ पे मिले कोई नई छाँव
कोई मील का पत्थर रोक ले मेरे पाँव
मुझको कोई शाम नया रँग दिखलाये
मेरी कलम मे रोशनाई नई भर जाए
लफ्जों के अम्बार मैंने टटोले हैं
बंद किवाड़ भी चुपके से कई खोले हैं
किसी पुराने लिफाफे में लिपटा हुआ
अनजान किसी खुशबू मे सिमटा हुआ
कोई नई बात ये लफ्ज़ मुझे कह जाए
मेरी कलम मे रोशनाई नई भर जाए
कोई साहिल मिले जो मौज से टूटा हो
कोई लम्हा जो कहीं वक्त से छूटा हो
किसी बिखरे से पल मे हो संजोया सा
दिखता हो हमेशा पर रहे खोया सा
ऐसे ख्याल से कोई मुझको मिल्वाये
मेरी कलम मे रोशनाई नई भर जाए
4 comments:
लफ्जों के अम्बार मैंने टटोले हैं
बंद किवाड़ भी चुपके से कई खोले हैं
किसी पुराने लिफाफे में लिपटा हुआ
अनजान किसी खुशबू मे सिमटा हुआ
कोई नई बात ये लफ्ज़ मुझे कह जाए
मेरी कलम मे रोशनाई नई भर जाए
हजूरे वाला .....आपने अपनी कलम को गौर से देखा ही कहाँ है......कम्ब्खत इतनी रौशनी है की पुरा u.a.e जगमगा रहा है......थोड़े पेन के छींटे इधर भी मारिये ...हम जैसे लोगो की भला हो जाएगा .....
रेत जो behtii है तो bahne दिया जाये
bahut aachhe bhaiya... kya baat kahi hai
meree kalam mein roshnai nai bhar jaye.....
bas likhte rahiye jo man may aye ,roshnai khud ba khud bhar jayegee.....
atyant sunder.
Apki Dua kabool ho....
लब पे आती है दुआ बनके तमन्ना मेरी
जिन्दगी शम्मा की सुरत हो ख़ुदाया मेरी
दूर दुनिया का मेरे दम अँधेरा हो जाए
हर जगह मेरे चमकने से उजाला हो जाये
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